रविवार, 13 सितंबर 2009

गज़ल

जब भी तुमने किया गिला होगा
इक   समन्दर   वहीं     हिला  होगा

बात कुछ यूं भी वही और यूं भी
अपना ऐसा ही सिलसिला    होगा

फूल पत्थर में उग के लहराया
यार अपना यहीं      मिला होगा

बन्द घाटी में    शोर पंछी का
गुल कहीं दूर पर खिला होगा

दूर कुछ     संतरी      खड़े से दिखे
किसी लीडर का यह किला होगा

2 टिप्‍पणियां: