बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

ग़ज़ल



बुरा ही वक्त सही, इतना भी ख़राब नहीं

कि शाम ढल  चुकी, और जाम में शराब नहीं



यह कौन जिसने, बुलाया है वक्त से पहले

यह क्या ख़ुदा है, जिसे वक्त का हिसाब नहीं



है साथ आपका, उस पर असर है मौसम का

हसीन इससे ज़ियादा और , कोई ख़्वाब नहीं



वह एक चेहरा जो  मिलता हमें था ख़्वाबों में

हया तो आप सी, पर आपका जवाब नहीं



वह  कौन शख़्स है, जो ग़मज़दा नहीं होता

वह रूह कहाँ है, जिस पे है  अज़ाब नहीं



किया तो मैंने भी है इश्क, संगे  मूरत से

नदी के इश्क का, फ़िर भी कोई जवाब नहीं



यह प्यार होता है, होता नहीं, नहीं होता

यह ऐसी कशमकश है , कोई  कामयाब नहीं ।